Thursday, July 26, 2018

राम चरित्र

श्रीरामचरित मानस लिखने के दौरान तुलसीदासजी ने लिखा-

सिय राम मय सब जग जानी; करहु प्रणाम जोरी जुग पानी!
अर्थात 'सब में राम हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम करना चाहिए।'

यह लिखने के उपरांत तुलसीदासजी जब अपने गांव की तरफ जा रहे थे तो किसी बच्चे ने आवाज दी- 'महात्माजी, उधर से मत जाओ। बैल गुस्से में है और आपने लाल वस्त्र भी पहन रखा है।'

तुलसीदासजी ने विचार किया कि हूं, कल का बच्चा हमें उपदेश दे रहा है। अभी तो लिखा था कि सब में राम हैं। मैं उस बैल को प्रणाम करूंगा और चला जाऊंगा। पर जैसे ही वे आगे बढ़े, बैल ने उन्हें मारा और वे गिर पड़े।

किसी तरह से वे वापस वहां जा पहुंचे, जहां श्रीरामचरित मानस लिख रहे थे। सीधे चौपाई पकड़ी और जैसे ही उसे फाड़ने जा रहे थे कि श्री हनुमानजी ने प्रकट होकर कहा- तुलसीदासजी, ये क्या कर रहे हो?  तुलसीदासजी ने क्रोधपूर्वक कहा, यह चौपाई गलत है और उन्होंने सारा वृत्तांत कह सुनाया। 

हनुमानजी ने मुस्कराकर कहा- चौपाई तो एकदम सही है। आपने बैल में तो भगवान को देखा, पर बच्चे में क्यों नहीं? आखिर उसमें भी तो भगवान थे। वे तो आपको रोक रहे थे, पर आप ही नहीं माने।

कहते है तुलसीदास जी को एक बार और चित्रकूट पर श्रीराम ने दर्शन दिए थे तब तोता बन कर हनुमान जी ने दोहा पढ़ा था: चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़, तुलसी दास चंदन घीसे तिलक करें रघुबीर।

जय श्री राम।...............................

Thursday, June 21, 2018

सियाराम मय सब जग जिनी, करहु प्रणाम जोर जुग पानी।


अलिरयं नलिनीदलमद्यगः, कमलिनीमकरन्दमदालसः। विधिवशात् परदेशमुपागतः, कुटजपुष्परसं बहु मन्यते॥

अलिरयं नलिनीदलमद्यगः,
                           कमलिनीमकरन्दमदालसः।
विधिवशात् परदेशमुपागतः,
                      कुटजपुष्परसं बहु मन्यते॥
*🔸शब्दार्थ*   :—  *अयम्*= यह *अलिः*= भ्रमर, भौंरा जब *नलिनी-दल-मध्यगः*= कमलिनी के पत्तों के मध्य में था तब *कमलिनी-मकरन्द-मद-आलसः*= कमलिनी के पराग के रस का पान कर उसे मत से अलसाया रहता था, परन्तु अब *विधिवशात्*= भाग्यवश *परदेश-उपागतः*= परदेश में आकर *कुटज-पुष्परसम्*= कुटज, करीर के पुष्प के रस को ही *बहु*= बहुत *मन्यते*= मानता है, जिसमें न रस है और न गन्ध है।
*🔸भावार्थ*   :—  आचार्य  कहते हैं कि परदेश में व्यक्ति को समय और आय के अनुसार स्वयं को ढाल लेना चाहिए। जिस प्रकार कमलिनी के पत्तों के बीच रहनेवाला भौंरा उसके पराग के रस में डूबा रहता था, किन्तु परदेश जाकर उसे करीर (कटसरैया) के गंधहीन और स्वादरहित रस में ही संतोष करना पड़ा, उसी प्रकार परदेश जाकर मनुष्य को उपलब्ध भोजन से ही संतोष करना चाहिए। इससे स्वयं को वहाँ के अनुकूल परिवर्तित करने में उसे सुविधा होगी।

पीतः क्रुद्धेन तातश्चरणतलहतो वल्लभो येन रोषाद्,
आबाल्याद्विप्रवर्यैः स्ववदनविवरे धार्यते  वैरिणी  मे।
गेहं मे  छेदयन्ति  प्रतिदिवसमुमाकान्तपूजानिमित्तं,
तस्मात्खिन्ना सदाहं द्विजकुलनिलयं नाथयुक्तं त्यजामि॥
*🔸शब्दार्थ*   :— लक्ष्मी विष्णु से कहती है  — *येन*= जिस (अगस्त्य ऋषि) ने *क्रुद्धेन*= रुष्ट होकर *तातः*= मेरे पिता समुद्र को *पीतः*= पी डाला, विप्रवर भृगु ने *रोषात्*= क्रोध से *वल्लभः*= मेरे ब्राह्मणों द्वारा *आबाल्यात्*= बाल्यकाल से ही *स्व-वदनविवरे*= अपने मुख रूपी विवरण (छिद्र) *मे*= मेरी *वैरिणी*= सौत (सरस्वती) *धार्यते*= धारण की जाती है और जो *प्रतिदिवसम्*= प्रतिदिन *उमाकान्त-पूजा-निमित्तम्*= पार्वती के पति शिव की पूजा के लिए *मे*= मेरे *गेहम्*= घर (कमल) *छेदयन्ति*= तोड़ते हैं, उजाड़ते हैं, नाथ! हे स्वामिन्! *तस्मात्*= इन कारणों से *खिन्ना*= खिन्न होकर *अहम्*= मैं *द्विजकुल-निलयम्*=  ब्राह्मणों के कुल को *सदा*= सदा *युक्तम्*= ठीक ही *त्यजामि*= छोड़े रहती हूँ। 
*🔸भावार्थ*   :— इस श्लोक में आचार्य ने श्रीविष्णु और लक्ष्मी के संवाद को प्रस्तुत किया है। इसके अंतर्गत एक बार श्रीविष्णु लक्ष्मी से पूछा कि आप ब्राह्मणों से असंतुष्ट क्यों रहती हैं? तब श्रीलक्ष्मी ने कहा कि हे स्वामी! अगस्त्य मुनि ने क्रोध से भरकर मेरे पिता सागर को पी डाला था। महर्षि भृगु ने आपके वक्ष-स्थल पर लात मारी थी। श्रेष्ट ब्राह्मणगण मेरी अपेक्षा मेरी बहन सरस्वती की पूजा करते हैं। उमापति शिव की पूजा-अर्चना करने के लिए वे नित्य मेरे निवास-स्थल कमल-पुष्पों को उजाड़ते रहते हैं। यही कारण है कि मैं ब्राह्मणों से असंतुष्ट रहती हूँ।
    यद्यपि यह संवाद साधारण-सा प्रतीत होता है। लेकिन इसके द्वारा आचार्य चाणक्य ने स्पष्ट किया है कि ब्राह्मण कभी भी धन को महत्व नहीं देते। उनके लिए ईश्वर-भक्ति से बढ़कर कुछ नहीं है।

बन्धनानि खलु सन्ति बहुनि,
                   प्रेम-रज्जु-दृढ़बन्धनम् अन्यत्।
दारुभेदनिपुणोऽपि षडङ्घ्रिर्,
          निष्क्रियो भवति पङ्कजकोशे॥
*🔸शब्दार्थ*   :— *बन्धनानि*= बन्धन तो  *खलु*= निश्चय ही *बहुनि*= बहुत से *सन्ति*= हैं, परन्तु *प्रेम-रज्जु-दृढ़-बन्धनम्*= प्रेम की रस्सी का दृढ़ बन्धन *अन्यत्*= कुछ अनोखा ही होता है, क्योंकि *दारु-भेद-निपुणः*= काठ को छेदने में कुशल *अपि*= भी *षडङ्घ्रिः*= भौंरा *पङ्कजकोशे*= कमल के फूल में बंद होकर *निष्क्रियः*= चेष्टारहित *भवति*= हो जाता है। कमल के साथ अत्यन्त स्नेह होने के कारण उसके छेदन में समर्थ होने पर भी उसे काटता नहीं है।
*🔸भावार्थ*   :—  आचार्य ने संसार के समस्त बन्धनों में से प्रेम-बन्धन को सबसे उत्तम कहा है। इस संदर्भ में वे उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जो भौंरा लकड़ी को भी छेदने की शक्ति रखता है, वह सुकोमल कमल-पंखुड़ियों में बंद होकर निष्क्रिय हो जाता है। ऐसा सिर्फ इसलिए है, क्योंकि वह कमल-पुष्प से प्रेम करता है और उसके अहित का भय ही उसे निष्क्रिय कर देता है। वह कमल की सुंदरता से प्रेम करता है। सुंदरता समाप्त होते ही उसका प्रेम भी समाप्त हो जाएगा। इसलिए प्रेम से वशीभूत होकर वह प्राण त्याग देगा 

छिन्नोऽपि चन्दनतरुर्न जहाति गन्धं,
             वृद्धोऽपि वारणपतिर्न जहाति लीलाम्।
यन्त्रार्पितो मधुरतां न  जहाति  चेक्षुः,
  क्षीणोऽपि न त्यजति शीलगुणान् कुलीनः॥
*🔸शब्दार्थ*   :—  *छिन्नः*= कटा हुआ *अपि*= भी *चन्दन-तरुः*= चन्दन का वृक्ष *गन्धम्*= अपनी सुगन्ध को *न जहाति*= नहीं छोड़ता *वृद्धः*= बूढ़ा *अपि*= भी *वारणपतिः*= गजराज *लीलाम्*= विलासी लीला (काम-क्रीड़ा) को  *न जहाति*= नहीं छोड़ता *च*= और *इक्षुः*= ईख *यन्त्र-अर्पितः*= कोल्हू में पेरे जाने पर भी *मधुरताम्*= अपने माधुर्य को *न जहाति*= नहीं छोड़ती, इसी प्रकार *कुलीनः*= कुलीन मनुष्य *क्षीणः*= धनहीन, दरिद्र होने पर  *अपि*= भी *शीलगुणान्*= दया, दक्षिण्य (चतुरता) आदि गुणों *न त्जयति*= नहीं छोड़ता।
*🔸भावार्थ*   :—  मनुष्य में जन्म के साथ ही स्वाभाविक गुणों का अविर्भाव होता है तथा वे मृत्यु तक उसके साथ रहते हैं। इस संदर्भ में आचार्य  कहते हैं जिस प्रकार कट आने बाद भी चन्दन वृक्ष की सुगंध समाप्त नहीं होती, वृद्ध होने के बाद भी हाथी की काम-पिपासा शांत नहीं होती, कोल्हू पिसने के बाद भी ईख की मिठास नहीं जाती, उसी प्रकार उच्च कुल में जन्मा शील-गुण से सम्पन्न मनुष्य धनहीन हो जाए तो भी उसकी विनम्रता, विनयशीलता  और सदाचरण नष्ट नहीं होते। वह विकट परिस्थिति में भी सद्व्यवहार करता है।

न  ध्यातं   पदमीश्वरस्य   विधिवत्संसारविच्छित्तये,
स्वर्गद्वारकपाटपाटनपटुर्धर्मोऽपि        नोपार्जितः।
नारीपीनपयोधरोरुयुगलं    स्वप्नेऽपि   नालिङ्गितं,
मातुः केवलमय यौवनवनच्छेदे कुठारा वयम्॥
*🔸शब्दार्थ*   :— मरणशय्या पर पड़ा हुआ कोई वृद्ध पश्चात्ताप कर रहा है कि मैंने अपने जीवन में कभी *संसार-विच्छित्तये*= संसार-जाल को काटने (मोक्ष प्राप्ति) के लिए _*विधिवत्*_= योगाभ्यासपूर्वक _*ईस्वरस्य*_= ईश्वर के _*पदम्*_= प्राप्तव्य स्वरूप का _*न ध्यातम्*_= ध्यान नहीं किया। _*स्वर्ग-द्वार-कपाट-पाटन-पटुः*_= स्वर्ग द्वार के कपाटों को खोलने में समर्थ _*धर्मः*_= धर्म _*अपि*_= भी _*न उपार्जितः*_= संगृहित नहीं किया और _*स्वपने-अपि*_= स्वपन में भी _*नारी-पीन-पयोधर-उरु-युगलम्*_= स्त्री के दोनों बड़े-बड़े स्तनों और जंघाओं का _*न आलिङ्गितम्*_= आलिंङ्गन नहीं किया, इस प्रकार न केवल मैं अपितु मेरे जैसे _*वयम्*_= हम सबहम _*मातुः*_= माता के *_यौवन-वनच्छेते*_= यौवनरुपि वृक्ष को काटने में _*केवलम्*_= मात्र _*कुठराः*_= कुल्हाड़े _*एव*_= ही सिद्ध हुए।
*🔸भावार्थ*   :—  वेद आदि धर्म-शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य-जीवन अत्यन्त दुर्लभ है। अनेक जन्मों के कष्ट भोगने के बाद ही जीवात्मा को मानव योनि में उत्पन्न होने का सौभाग्य प्राप्त होता है। इसलिए इस जन्म को विषय-वासनाओं में व्यर्थ गवाने  अपेक्षा मोक्ष-प्राप्ति हेतु इसका उपयोग करना चाहिए और मनुष्य को मोक्ष तभी प्राप्त हो सकता है, जब उसका लोक-परलोक सुधर जाए। इसी उक्ति के संदर्भ में आचार्य ने उपर्युक्त श्लोक द्वारा लोक-परलोक सुधारने की बात कही है। वे कहते हैं कि जिसने लोक सुधारने के लिए पर्याप्त धन का संग्रह नहीं किया, जो संसारिक मायाजाल से मुक्त होने के लिए ईश्वर-भक्ति नहीं करता, जिसनेे कभी रति क्रिया का स्वाद न चखा हो, ऐसा मनुष्य का न तो इस लोक में भला होता है और नही परलोक सुधरता है। ऐसे मनुष्य माता के यौवन रूपी वृक्ष को कुल्हाड़े से काटने का कार्य करते हैं। अर्थात उनके जन्म से न तो माता को सुख प्राप्त होता है और न ही कोई सार्थक श्रेय मिलता है। इसलिए वे कहते हैं कि मनुष्य को इस लोक में संसासिक सुखों का यथावत् भोग करना चाहिए; लेकिन साथ ही धार्मिक कार्यों द्वारा परलोक को सुधारने के लिए भी प्रयासरत रहना चाहिए।

Thursday, March 8, 2018

मानव जीवन मे कमी बनी रहती है, जिसकी कमी पूरी हुई समझो वह सच्चा संत है।

कोई भी व्यक्ति, कितना भी शक्तिशाली व सक्षम हो, जीवन का एक कोना ऐसा होता है जहाँ वह तमाम सामाजिक विविधताओं से दूर बैठा, किसी बच्चे सा किसी के अधीन हो कर जीना चाहता है, सर्वस्व होते हुए भी कुछ पाना चाहता है।
यही तो है भाग्य, कर्म व विधि का विधान, की हर एक के जीवन में थोड़ी सी कमी रह ही रह ही जाती है।

Wednesday, March 7, 2018

🎈मंगलमय सुप्रभात🎈
     💐HAPPY💐
  🌷WOMEN DAY🌷
💁🏼🤷🏼‍♀🙋💁🏼🤷🏼‍♀🙋💁🏼🤷🏼‍♀🙋

      दिन की रोशनी ख्वाबों को बनाने मे गुजर गई,
रात की नींद बच्चे को सुलाने मे गुजर गई,
जिस घर मे मेरे नाम की तखती भी नहीं,
सारी उमर उस घर को सजाने मे गुजर गई।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
जिसने बस त्याग ही त्याग किए
जो बस दूसरों के लिए जिए
फिर क्यों उसको धिक्कार दो
उसे जीने का अधिकार दो
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क्यों त्याग करे नारी केवल
क्यों नर दिखलाए झूठा बल
नारी जो जिद्द पर आ जाए
अबला से चण्डी बन जाए
उस पर न करो कोई अत्याचार
तो सुखी रहेगा घर-परिवार.
🥀🌾🥀🌾🥀🌾🥀🌾🥀

मुस्कुराकर, दर्द भूलकर
रिश्तों में बंद थी दुनिया सारी
हर पग को रोशन करने वाली
वो शक्ति है एक नारी.
🍡💦🍡💦🍡💦🍡💦🍡
नर सम अधिकारिणी है नारी
वो भी जीने की अधिकारी
कुछ उसके भी अपने सपने
क्यों रौंदें उन्हें उसके अपने
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नारी सीता नारी काली
नारी ही प्रेम करने वाली
नारी कोमल नारी कठोर
नारी बिन नर का कहां छोर
🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈
नारी ही शक्ति है नर की
नारी ही है शोभा घर की
जो उसे उचित सम्मान मिले
घर में खुशियों के फूल खिलें
👨‍👦👨‍👧👨‍👦👨‍👧👨‍👦👨‍👧👨‍👦👨‍👧👨‍👧
आंचल में ममता लिए हुए
नैनों से आंसु पिए हुए
सौंप दे जो पूरा जीवन
फिर क्यों आहत हो उसका मन.
💃💃💃💃💃💃💃💃💃
बेटी-बहु कभी माँ बनकर
सबके ही सुख-दुख को सहकर
अपने सब फर्ज़ निभाती है
तभी तो नारी कहलाती है
👩🏻‍🎨👩🏻‍🎨👩🏻‍🎨👩🏻‍🎨👩🏻‍🎨👩🏻‍🎨👩🏻‍🎨👩🏻‍🎨👩🏻‍🎨

🌹Happy Womes Day 🌹
🙏🙏JAY MAHADEV🙏🙏
*✡राशिफल: 08 मार्च 2018, गुरुवार✡*


मेष (Aries): आज का दिन आध्यात्मिक दृष्टि से आपको अनूठी अनुभूति कराने वाला रहेगा। वाणी तथा नफरत की भावना पर संयम रखें। नए कार्य का प्रारंभ हो सके तो न करें। लंबी यात्रा हो सके तो टाल दें।

वृष (Taurus): गणेशजी के आशीर्वाद से आज आपको गृहस्थजीवन में सुख का अनुभव होगा। विदेश में स्थित सम्बंधियों के समाचार से मन प्रफुल्लित होगा। लक्ष्मीजी की आकस्मिक कृपा आप पर हो सकती है।

मिथुन (Gemini):गणेशजी कहते हैं कि आज का दिन आपके लिए शुभ फलदायी है। घर में शांति और आनंद का वातावरण बना रहेगा। आपके अधूरे कार्य संपन्न होंगे इससे आपको यश और कीर्ति मिलेगी। आर्थिक लाभ भी मिलेगा।

कर्क (Cancer): आज का दिन शांतिपूर्वक बिताने के लिए गणेशजी सलाह देते हैं। पेट में तकलीफ हो सकती है। मानसिक रूप से चिंता, उद्वेग बना रहेगा। आकस्मिक खर्च होगा। वाद-विवाद टालें।

सिंह (Leo): आज आप शारीरिक रूप से अस्वस्थ तथा मानसिक रूप से व्याकुल रह सकते हैं। घर में स्वजनों के साथ गलतफहमी से मन उदास हो सकता है। सरकारी तथा संपत्ति से संबंधित कागजातों के मामले में सावधानी रखें।

कन्या (Virgo): किसी भी कार्य में सोच समझकर आगे बढ़ें। भाई-बहनों के साथ प्यारभरा संबंध बना रहेगा। मित्रों, एवं स्वजनों के साथ मुलाकात होगी। प्रत्येक कार्य में सफलता मिलने की संभावना है। आर्थिक लाभ की संभावना अधिक है।

तुला (Libra): आज आपका मनोबल कमजोर रह सकता है। परिवारजनों के साथ वाद-विवाद न हो इसलिए जबान पर संयम रखें। हठ को त्यागकर मेलमिलाप से काम करने का प्रयास करें।

वृश्चिक (Scorpio): आज का दिन आपके लिए शुभ है। शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। परिवार के सदस्यों के साथ आनंदपूर्वक समय बिताएंगे। स्वजनों से भेट या उपहार मिल सकता है। शुभ समाचार मिलेंगे तथा आनंददायी प्रवास संभव है।

धनु (Sagittarius): आज का दिन आपके लिए कठिनता भरा हो सकता है। परिजनों के साथ विवाद हो सकता है। वाणी पर संयम रखना पड़ेगा। अचानक कुछ घटना हो सकती है सावधान रहें। धन खर्च होगा।

मकर (Capricorn): दिन आनंदपूर्ण बितेगा। सामाजिक क्षेत्र, व्यापार तथा अन्य क्षेत्र में आपके लिए आज का दिन लाभदायी रहेगा। प्रवास-पर्यटन का योग है। घर में किसी शुभ प्रसंग की संभावना गणेशजी देखते हैं।

कुंभ (Aquarius): दिन अनुकूल है। आपका हर कार्य सरलतापूर्वक संपन्न होगा जिसकी वजह से आप प्रसन्न रहेंगे। ऑफिस एवं व्यवसायिक स्थल पर अनुकूल परिस्थितियों का वातावरण रहेगा एवं बडी सफलता मिल सकती है। मान-सम्मान में वृद्धि होगी।

मीन (Pisces): मन में व्याकुलता एवं अशांति के अहसास के साथ आपके दिन का प्रारंभ होगा। शारीरिक रूप से आपको थकान का अनुभव हो सकता है। उच्च अधिकारियों के साथ संभलकर व्यवहार करें। संतान के विषय में चिंता सताएगी। व्यर्थ खर्च होगा।



*ज्योतिष एवं वास्तु मार्गदर्शक*

*डिजिटल उपवास*

सवेरे से मित्र को चार पांच बार फोन किया । लेकिन उसका फोन उठ ही नहीं रहा था। व्हाट्सएप और फेसबुक पर भी मैसेज किया लेकिन कोई जवाब नहीं। मुझे चिंता हो गई  कि क्या बात है।

आखिर दोपहर बाद रहा नहीं गया तो मैं नजदीक ही रहने वाले  मित्र के घर पहुंच गया। देखा तो श्रीमान गार्डन में एक पुस्तक लेकर बैठे हुए थे।

मैं जाते ही बरस पड़ा।  सुबह से तुम्हें  फोन कर रहा हूं। मैसेज भी कर रहा हूं । लेकिन तुम्हारा कोई जवाब ही नहीं मिल रहा क्या बात है तबीयत तो ठीक है ? 

मित्र ठठाकर हंस पड़ा  और बोला भाई मेरा आज उपवास है इसलिए फोन पर तुमसे बात नहीं कर सका ।

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ यार उपवास में खाना नहीं खाते हैं व्रत रखते हैं लेकिन फोन पर तो बात कर सकते हैं।

उसने हंसते हुए कहा कि आज मेरा डिजिटल उपवास है हफ्ते में एक दिन के लिए मैंने निश्चय किया है कि ना तो किसी से फोन पर बात करूंगा ना फेसबुक अपडेट करूंगा न व्हाट्सएप चैट करूंगा न ही गूगल लिंक या कोई और सोशल साइट ही देखूंगा। इसे मैंने डिजिटल उपवास का नाम दिया है।

सही कह रहा हूं आज का दिन मेरा बहुत ही बढ़िया गुजरा न फोन की घंटी और ना समय की कमी। देख कितने दिन हुए महा समर का पहला खण्ड् पढने की इच्छा थी आज इसे शुुरू कर सका हूं।

इतने में भाभी चाय बना कर ले आइ बोली भाई साहब आज तो कमाल हो गया शाम को हमारा पिक्चर देख कर कुछ खरीददारी करने का विचार है और इनके इस डिजिटल उपवास ने मुझे  कितनी खुशी दी है मैं आपको बता नहीं सकती ।

तब मैंने भी निश्चय किया कि कम से कम 1 दिन डिजिटल उपवास तो मुझे भी करना ही चाहिए। बल्कि मेरी सलाह है हम सबको करना चाहिए ताकि एक दिन तो अपने परिवार को पूरा समय दें।

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*एक दिन परिवार के संग*